
इटावा, 14 फरवरी । उत्तर प्रदेश में इटावा स्थित सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग ने दुर्लभ रैपुन्जेल सिंड्रोम से पीड़ित बच्ची का सफल आपरेशन करने में सफलता हासिल की है।
जिले के कर्री गांव की तीन वर्षीय बच्ची, जिसे दुनिया में अब तक की सबसे कम उम्र की रैपुन्जेल सिंड्रोम पीड़ित बच्चों में से एक माना जा रहा है, का सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में सफल ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन करने वाले पीडियाट्रिक सर्जन डा.राफे रहमान और डा. सर्वेश कुमार गुप्ता ने बताया कि पीड़ित बच्ची पिछले छह महीनों से पेट दर्द की समस्या से परेशान थी और चार दिनों से लगातार हरे रंग की उल्टियाॅ कर रही थी। परिजनों ने शुरू में सामान्य परेशानी समझा। जब बच्ची की स्थिति बिगड़ने लगी तो उसे 31 जनवरी को पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया। प्रारंभिक जाॅच जिसमें अल्ट्रासाउंड (यूएसजी) और सीटी स्कैन से संदेह हुआ कि बच्ची को आंतों की गंभीर समस्या हो रही है। गंभीरता को देखते हुए लैप्रोटोमी सर्जरी करने का निर्णय लिया गया।
आप्रेशन के दौरान पता चला कि बच्ची की छोटी आंत (डुओडेनम और जेजुनम) में दो बड़े छेद थे। जिससे बालों का गुच्छा बाहर आ रहा था। जब पूरे पेट की जाॅच की गयी तो वह पत्थर की तरह कठोर महसूस हो रहा था। सर्जरी के दौरान दो किलोग्राम के वजनी बालों का एक विशाल गुच्छा (ट्राइकोबीजोआर) पेट से निकाला गया जो छोटी आंत तक फैला हुआ था।
डाॅ.राफे रहमान ने बताया कि इस स्थिति को “रैपुन्जेल सिंड्रोम” के रूप में जाना जाता है, जो अत्यंत दुर्लभ है। आमतौर पर यह 15-20 वर्ष की किशोरियों में देखा जाता है, लेकिन इतनी कम उम्र में इस बीमारी का पाया जाना चिकित्सा जगत के लिए भी आश्चर्यजनक है। चिकित्सा इतिहास की बात की जाय तो इस बीमारी का अब तक का दर्ज यह दुनिया के सबसे कम उम्र के बच्चों में से एक मामला लग रहा है।
इस सफल जटिल सर्जरी को पीडियाट्रिक सर्जन डा. राफ़े रहमान और डा.सर्वेश कुमार गुप्ता के नेतृत्व में किया गया।डा. गुप्ता ने बताया कि ऑपरेशन के बाद बच्ची को एक दिन के लिए वेंटिलेटर पर रखा गया। छठें दिन उसे तरल और हल्का भोजन दिया गया, जिसे उसने बिना किसी समस्या के ग्रहण किया। अब बच्ची की हालत स्थिर है और वह तेजी से स्वस्थ हो रही है।
डा. रहमान ने बताया कि रैपुन्जेल सिंड्रोम एक दुर्लभ मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति अपने ही बाल खाने की आदत विकसित कर लेता है। ये बाल पेट में जमा होकर गुच्छे (ट्राइकोबीजोआर) का रूप ले लेते हैं, जिससे पाचन तंत्र बाधित हो जाता है। समय पर इलाज न मिलने पर यह स्थिति काफी जानलेवा भी हो सकती है।
ऐसे मामलों से बचने के लिए माता-पिता को बेहद सतर्क रहने कि जरूरत है। यदि किसी बच्चे के बाल असामान्य रूप से कम होने लगे या वह बाल चबाते हुए देखा जाए, तो तुरन्त बिना किसी देरी के डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
कुलपति प्रो डा पीके जैन ने कहा कि यह सफल ऑपरेशन न केवल बच्ची के जीवन के लिए एक नई शुरुआत है, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में दर्ज किया जायेगा।